महेन्द्र बाबू ने घर में प्रवेश किया | उनकी पत्नी ने जब उन्हें पानी का गिलास थमाया तो थोड़े आश्चर्य से पूछा –“आज दोनों बहन-भाई गायब हैं क्या घर से ?”
“हाँ, भाई अपनी बहन को ड्राइविंग सिखाने ले गया है | मुझे तो डर है कहीं हाथ-पैर न तुडवा बैठे तुम्हारी लाडली ? बड़ी आई ड्राइविंग सीखने वाली | साल दो साल में सही सलामत अपने घर-बार की हो जाये तो चैन की साँस लूँ |”
“अरे ! तो भाग्यवान सीख लेने दो | ये तो सोचो भाई का अपनी बहन के प्रति कितना स्नेह है ? और फिर आजकल तो लडकियाँ लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं और तुम बेटी की स्कूटी ड्राइविंग से डर रही हो |”
“ड्राइविंग से नही आपके बेटे की सनक से डर रही हूँ | कितने महीनों से मोटरसाइकिल लेने की जिद कर रहा था और जब आपने जोड़-तोड़ करके पैसे दिए तो फिर अचानक से शौक बदल गया और स्कूटी ले आया |”
“हाँ, ये बात तो मेरी भी समझ में नही आयी | मैं बहुत कहा करता था कि थोड़ी सस्ती मोटरसाइकिल ले लेते हैं बुलेट क्या ज़रूरी है ? तो साहबज़ादे का एक ही ज़वाब होता कि पापा मर्दों वाली बात तो बस बुलेट में ही है .... और अब देखो जनाना वाहन खरीद लाया |”
“आप भी कमाल करते हो .. भला वाहन भी ज़नाने-मर्दाने होते हैं क्या ?”
महेन्द्र बाबू ने अब चुप रहने में ही भलाई समझी और चश्मा लगाकर अखबार पढने में लग गये | अनीता भी पति के चुप होते ही रसोई में चली गयीं |
दिन ढलने के समय पंकज और पूनम घर लौटे | पूनम बड़ी चहक रही थी | चिल्लाकर बोली- “पापा, आज मैंने भी स्कूटी चलायी |”
“अच्छा ! एक ही दिन में ड्राईवर बन गयी हो ?”
“कहीं ड्राईवर नही बनी पापा.. हैंडल पकड़ते हुए तो हाथ काँपते हैं | चलाना तो दूर की बात |” पंकज ने पूनम को चिढाते हुए कहा |
“तो क्या एक ही दिन में सीख लेगी ? मुझे तो लगता है किसी दिन नयी स्कूटी भी टूटेगी और इसके हाथ-पाँव भी” अनीता थोड़ी नाराजगी से बोली |
“नही माँ, स्कूटी भले ही टूट जाये | लेकिन भैया मेरे हाथ-पाँव नही टूटने देंगें |” पूनम ने बड़े प्रेम और विश्वास के साथ पंकज की और देखते हुए कहा |
“चल बड़ी आई भैया की लाडली.... अब दोनों नहा धोकर इन्सान के बच्चे बन जाओ |” कहकर अनीता ने व्यंग्य से
महेन्द्र बाबू की और देखा | बेचारे सकपका गये | बोले कुछ नही |
* * *
महेन्द्र बाबू का घर शहर के बाहरी इलाके में था | यहाँ से बैंक, बाज़ार या फिर शहर के अन्य अंदरूनी हिस्से में जाना हो तो ऑटो का ही सहारा लेना पड़ता था | पूनम का कॉलेज भी शहर के दूसरी ओर पड़ता था | पिछले कई दिनों से पंकज ही पूनम को कॉलेज छोड़ने जा रहा था क्योंकि उसे आजकल ज़ल्दी जाना होना होता था और इतनी ज़ल्दी इधर से कोई ऑटो-रिक्शा गुजरता नही था | उसके कॉलेज में कोई कार्यक्रम चल रहा था और वो भी उसमे सक्रिय रूप से प्रतिभाग कर रही थी | पंकज प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जी-जान से जुटा था | वो किसी कोचिंग सेंटर में पढ़ाने भी जाया करता था | इससे उसका खुद का खर्च निकल जाता था | महेन्द्र बाबू के दोनों बच्चे होनहार थे | पढाई में दोनों अच्छे थे | दोनों अपने घर के बजट को अच्छी तरह समझते थे | कभी माता-पिता को शिकायत का मौका नही देते थे |
* * *
उस दिन सुबह-सुबह बाथरूम में पंकज फिसल गया और हाथ में चोट आ गयी | अनीता बहुत परेशान थीं | महेन्द्र बाबू कल से बाहर गये थे | बेटे को चोट लग गयी और ऊपर से बेटी के कॉलेज के कार्यक्रम का समापन समारोह भी आज ही था | पूनम भी उदास थी | वो चाहती थी कि आज जब मंच पर उसे उसके सराहनीय कार्यों के लिए सम्मानित किया जाए तो उसका परिवार भी वहाँ उपस्थित हो | लेकिन पापा घर पर थे नही, भैया को चोट लग गयी और माँ भैया को छोड़कर कैसे उसके साथ कॉलेज जाती ?
“बेटा, तू थोडा सा कुछ खा ले | मैं पूनम को ऑटो में बिठाकर आती हूँ फिर तुझे लेकर डॉक्टर के पास जाऊँगी |” अनीता ने पंकज का सर सहलाते हुए कहा |
“क्या माँ ? कमाल करती हो | हम क्या इतने छोटे बच्चे हैं ? और पूनम तू आज अकेले स्कूटी ले जा कॉलेज में | अब तो पन्द्रह दिन हो गये सीखते हुए |”
“दिमाग ख़राब हो गया है तेरा ? बेटा पहले से ही चोट खाए बैठा है और बेटी को अकेले स्कूटी ले जाने दूँ ?
“माँ, वो अच्छा चलाने लगी है वो आराम से अकेले स्कूटी से आ जा सकती है |”
लेकिन अनीता ने एक नही सुनी और बेटी को लेकर बाहर सडक पर आ गयी | वैसे उन्हें अच्छी तरह पता था कि उस समय कोई साधन मिलना मुश्किल था |
काफी देर तक दोनों ऑटो रिक्शा की प्रतीक्षा करती रही | पैदल भी तो नही जा सकता था इतनी दूर तक | पूनम काफी परेशान थी | कॉलेज से सहेलियों के बार-बार फोन आ रहे थे | वहाँ सभी इन्तजार कर रहे थे क्योंकि कार्यक्रम के आयोजन में पूनम की मुख्य भूमिका थी | अन्त में उसने स्कूटी से ही कॉलेज जाने का निश्चय किया | अनीता ने बहुत मना किया | एक तरफ तो उन्हें बेटी को चोट लग जाने का डर सता रहा था और दूसरी ओर वो ये भी समझ रही थी कि उसने पिछले दो हफ्तों से कितनी मेहनत की थी अपने कॉलेज के कार्यक्रम के लिये और आज जब उसे उसकी
मेहनत का फल मिलने वाला है तो कैसे रोके उसे ?
पूनम ने काँपते हाथो से स्कूटी घर से बाहर निकाली | माँ ने एक बार फिर मना किया | पूनम ने निरीह भाव से भाई की तरह देखा |
पंकज ने दृढ शब्दों में कहा –“तू डर क्यों रही है पगली ? स्कूटी रोज़ नही चलाती क्या ?”
पूनम ने फिर उसी निरीह भाव से कहा –“लेकिन भैया, रोज़ तो आप मेरे पीछे बेठे होते हो ना स्कूटी पर तो डर नही लगता |”
पंकज ने हँसते हुए कहा –“अच्छा रात भर तो तू नारी सशक्तिकरण पर लम्बा चौड़ा भाषण रटती रही और अब इतना डर रही है |”
“भैया, भाषण तो कॉलेज में बोलने के लिए लिखा था” पूनम का स्वर अभी भी बुझा हुआ था |
“अरे, बोलेगी तो तभी जब कॉलेज तक पहुँचेगी | अब स्कूटी स्टार्ट कर और ज़ल्दी निकल |”
पूनम ने स्कूटी स्टार्ट की | पहले माँ की ओर देखा और फिर भाई की ओर | भाई के प्रसन्न और विश्वास से भरे चेहरे से उसे सम्बल मिला |
पूनम के जाते ही अनीता की आँखों से आँसू निकल पड़े | रोते हुए बोली –“पता नही मेरी बच्ची आज सही-सलामत भी घर वापस आयेगी या नही |”
“आयेगी माँ ज़रूर आयेगी, सही सलामत ही घर आयेगी |” कहते-कहते पंकज ने अपना फोन निकालकर अपने दोस्त को मिलाया |
“हाँ, ज़ल्दी आ जा |” इतना कहकर उसने फोन जेब में रखा | चप्पल निकालकर अपने जूते पहने और जब तक वो हेलमेट लेकर बाहर बाहर निकला सुरेन्द्र मोटरसाइकिल लेकर दरवाज़े पर आ चुका था | दरवाजे पर सुरेन्द्र को देखकर माँ लपककर बाहर आयी |
“अच्छा हुआ बेटा तू आ गया, जा इसे ज़ल्दी डॉक्टर के पास ले जा |”
“ठीक है आंटी जी” सुरेन्द्र ने ज़वाब दिया
पंकज ने सुरेन्द्र को पीछे बैठने का इशारा किया और खुद मोटरसाइकिल स्टार्ट की | इससे पहले कि माँ कुछ बोल पाती पंकज ने तेजी से मोटरसाइकिल दौड़ा दी | माँ फटी आँखों से बेटे को जाते देखती रही |
* * *
कॉलेज पहुँचने में पूनम को देर तो हुई लेकिन कोई विशेष परेशानी नही हुई | क्योंकि अधिकांश तैयारी उसकी साथियों ने ठीक-ठाक कर ली थी | आगे की सारी ज़िम्मेदारी पूनम ने सम्भाली | दो हफ्ते चले नारी-सशक्तिकरण कार्यक्रम का आज भव्य समापन समारोह था | सभागार में कोई भी कुर्सी खाली नही बची थी | देर से आने वालों को तो खड़ा ही रहना पड़ा |
एक के बाद एक वक्ता आते गये और ओजस्वी भाषण देते रहे |
और एक समय आया जब उदघोषक द्वारा घोषणा की गयी- “अब मै अपने विद्यालय की बहुत ही होनहार छात्रा कुमारी पूनम को मंच पर बुलाना चाहती हूँ | दो हफ्ते तक चले इस कार्यक्रम में पूनम ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आज भी इस समापन समारोह का सारा भार भी पूनम ने अपने कन्धों पर लिया हुआ है | सारी व्यवस्थाएँ उसने खुद की | ऐसी होनहार और परिश्रमी बच्ची पर इस कॉलेज को गर्व है | मैं पूनम से आग्रह करती हूँ कि मंच पर आकर अपने विचार रखें | उसके बाद इस कार्यक्रम में उल्लेखनीय भागीदारी करने वाले सभी विद्यार्थियों को मुख्य अतिथि महोदय द्वारा प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया जायेगा |”
पूनम धीमे-धीमे क़दमों से मंच पर आयी | सभी शिक्षक-शिक्षिकाएँ और सहपाठी थोडा आश्चर्य में थे कि हमेशा चहकती, हँसती मुस्कुराती चंचल पूनम आज इतनी गम्भीर मुद्रा में क्यों है ?
अभिवादन की औपचारिकता के बाद पूनम ने बोलना शुरू किया –“मैंने बड़ा लम्बा-चौड़ा भाषण लिखा था आज बोलने के लिए | रातभर उसे रट्टा मार-मार कर याद भी किया | लेकिन आज मुझे लगता है कि वो भाषण बिल्कुल निरर्थक है | मुझे आज ही समझ में आया कि नारी-सशक्तिकरण वास्तव में क्या है ? और ये होता कैसे है ? मैं अपने सभी सम्मानित शिक्षकों-शिक्षिकाओं और सहपाठियों से क्षमा चाहूँगी क्योंकि आज मुझे लगता है कि पिछले दो हफ्तों से हम जो भी करते रहे वो सब कुछ व्यर्थ था |बड़ी-बड़ी रेलियाँ निकालने से, रंगोलियाँ सजाने से, पोस्टर बनाने से, जोर-जोर से नारे लगाने से या फिर सभाएँ आयोजित करके लम्बे-लम्बे भाषण देने से किसी नारी का सशक्तिकरण होना सम्भव नही है | कुछ सार्थक और व्यवाहरिक करने की आवश्यकता है | जिसके उपरान्त यह स्पष्ट रूप से देखा जा सके कि हाँ, कोई नारी सशक्त हुयी है | इधर मैं रैली और पोस्टर जैसे दिखावटी कार्यों में लगी रही और उधर मेरे भैया मुझे स्कूटी चलाना सिखाते रहे | स्कूटी चलाना सीख जाना कोई बड़ी बात नही | लेकिन आज जब खुद अकेली बिना किसी की सहायता के अपने घर से स्कूटी चलाकर कॉलेज तक पहुँची तो मुझे अपने अन्दर से महसूस हुआ कि मेरे भाई ने मुझे सबल बनाया है | उन्होंने जो मुझे एक छोटी सी दूरी अकेले तय करने के लायक बनाया है उससे मुझमें जिन्दगी के लम्बे-लम्बे सफर अकेले तय करने की हिम्मत आई है | मैं अनुभव कर रहीं हूँ की थोडा सा ही सही लेकिन आज मेरा सशक्तिकरण अवश्य हुआ है |”
“भैया, मैंने आपको देख लिया है आप इसी हॉल में सुरेन्द्र भैया के साथ खड़े हैं | आप झूठे हो भैया, आपके हाथ में चोट नही लगी थी क्योंकि अभी कुछ देर पहले आप तालियाँ बजा रहे थे | आपने केवल इसलिए चोट का बहाना बनाया कि मैं अकेले बिना किसी के सहारे के स्कूटी चलाकर कॉलेज तक आ सकूँ |”
सभागार में सन्नाटा छा गया |
सबकी दृष्टि भीड़ में पूनम के भैया को पहचानने की कोशिश कर रही थी |
- जय कुमार