दोनो तरफ़ वाहनों की लम्बी कतार थी. ज़ाम लगाने वालों मे अधिकांश महिलायें थी. शेष नवयुवक थे.
दुपहिया वाहनों को भी निकलने नही दिया जा रहा था. एक रास्ता गाँव को मुख्य मार्ग से जोडता है. इसी तिराहे पर मानव श्रखँला बनाकर ज़ाम लगाया था. मैं और मेरा साथी मोटरसाथीकिल से होते हुये तिराहे तक पहुँचे. हमारे वहाँ पहुँचते ही कुछ लाठी धारक दौडॆ आये और चिल्लाए- "कोई नही निकल सकेगा". तभी पास खडे युवकों ने उन्हें रोका और क्षमा माँगते हुए कहा- "आप जाइए सर ! ये आपको पहचानते नही हैं". लेकिन मुझे अभी घर नही जाना था, मैं तो लाश देखने आया था. मैने अपने साथी से मोटरसाईकिल वापस विद्यालय में छोडकर आने को कहा.
शव को पेड से उतार लिया गया था. गाँववाले शव को मुख्य मार्ग पर रखने कि ज़िद कर रहे थे. पुलिस ऎसा न क्ररने का आग्रह कर रही थी.
मुझसे लाश देखी नही जा रही थी. गले में चुन्नी का फ़न्दा डालकर हत्या की गयी थी. जैसे ही मैं मुडकर वापस चलने लगा, मैने देखा एक बूढा आदमी आँखों में आँसू लिये मेरी ओर देख रहा था. मुझे बडा आश्चर्य हुआ. मैं उस गाँव के प्रत्येक व्यक्ति को जानता हूँ. उस गाँव का तो वह बिल्कुल नही था. फ़िर मुझे याद आया कि जब हम तिराहे पर पहूँचे थे तो यही आदमी लोगों से कह रहा था-"हमें जाने दो, हमारा अस्पताल पहूँचना बहुत ज़रूरी है".
करुण स्वर में वो बोला- "भाई साहब, अधिकतर सभी लोग यहाँ आपको जानते हैं. आप कहेंगें तो वो हमारी कार को निकल जाने देंगें. मेरी बीवी अस्पताल नही पहूँची तो मर जायेगी". कहते कहते वो रो पडा.
खेत से निकल हम सडक पर आ गये.
एक यूवक को बुरी तरह पीटा जा रहा था. ज़ाम से निकलने की कोशिश की थी उसने शायद. पास ही पडी उसकी मोटरसाईकिल पर भी कुछ लोग अपनी शक्ति आज़मा रहे थे. मैने उस अधेड की ओर देखा. उसकी आँखों में याचना के भाव और प्रबल गये. मैने एक नज़र मे ज़ाम लगाने वालों की सँख्या और ताकत का अन्दाज़ा लगाया. मेरा साथी बोला-"अब चलिये भी". मेरे अन्दर का कायर शायद जाग गया. मैने उस अधेड के आँसू भरे चेहरे पर एक नज़र डाली और तेज़ी से निकल पडा.
दुपहिया वाहनों को भी निकलने नही दिया जा रहा था. एक रास्ता गाँव को मुख्य मार्ग से जोडता है. इसी तिराहे पर मानव श्रखँला बनाकर ज़ाम लगाया था. मैं और मेरा साथी मोटरसाथीकिल से होते हुये तिराहे तक पहुँचे. हमारे वहाँ पहुँचते ही कुछ लाठी धारक दौडॆ आये और चिल्लाए- "कोई नही निकल सकेगा". तभी पास खडे युवकों ने उन्हें रोका और क्षमा माँगते हुए कहा- "आप जाइए सर ! ये आपको पहचानते नही हैं". लेकिन मुझे अभी घर नही जाना था, मैं तो लाश देखने आया था. मैने अपने साथी से मोटरसाईकिल वापस विद्यालय में छोडकर आने को कहा.
शव को पेड से उतार लिया गया था. गाँववाले शव को मुख्य मार्ग पर रखने कि ज़िद कर रहे थे. पुलिस ऎसा न क्ररने का आग्रह कर रही थी.
मुझसे लाश देखी नही जा रही थी. गले में चुन्नी का फ़न्दा डालकर हत्या की गयी थी. जैसे ही मैं मुडकर वापस चलने लगा, मैने देखा एक बूढा आदमी आँखों में आँसू लिये मेरी ओर देख रहा था. मुझे बडा आश्चर्य हुआ. मैं उस गाँव के प्रत्येक व्यक्ति को जानता हूँ. उस गाँव का तो वह बिल्कुल नही था. फ़िर मुझे याद आया कि जब हम तिराहे पर पहूँचे थे तो यही आदमी लोगों से कह रहा था-"हमें जाने दो, हमारा अस्पताल पहूँचना बहुत ज़रूरी है".
करुण स्वर में वो बोला- "भाई साहब, अधिकतर सभी लोग यहाँ आपको जानते हैं. आप कहेंगें तो वो हमारी कार को निकल जाने देंगें. मेरी बीवी अस्पताल नही पहूँची तो मर जायेगी". कहते कहते वो रो पडा.
खेत से निकल हम सडक पर आ गये.
एक यूवक को बुरी तरह पीटा जा रहा था. ज़ाम से निकलने की कोशिश की थी उसने शायद. पास ही पडी उसकी मोटरसाईकिल पर भी कुछ लोग अपनी शक्ति आज़मा रहे थे. मैने उस अधेड की ओर देखा. उसकी आँखों में याचना के भाव और प्रबल गये. मैने एक नज़र मे ज़ाम लगाने वालों की सँख्या और ताकत का अन्दाज़ा लगाया. मेरा साथी बोला-"अब चलिये भी". मेरे अन्दर का कायर शायद जाग गया. मैने उस अधेड के आँसू भरे चेहरे पर एक नज़र डाली और तेज़ी से निकल पडा.
-जय कुमार